लेख-निबंध >> जीवन और मृत्यु जीवन और मृत्युजे. कृष्णमूर्ति
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मृत्यु के बाद क्या होता है...
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
मृत्यु के बाद क्या होता है, इससे कहीं अधिक सार्थकता एवं प्रासंगिकता इस तथ्य की है कि मृत्यु से पहले के तमाम वर्ष हमने कैसे जिये हैं। मन-मस्तिष्क में समाये अतीत के समस्त संग्रहों, दुख-सुख के अनुभवों, छवियों, घावों, आशाओं-निराशाओं और कुंठाओं के प्रति पूर्ण रूप से मरे बगैर हम जीवन को कभी ताज़ी-नूतन आँखों से नहीं देख सकते। मरना कोई दूर भविष्य में होने वाली डरावनी घटना न होकर इस क्षण होने वाली नवीनीकरण कि प्रक्रिया है। जीवन और मृत्यु कि विभाजक रेखा को ध्वस्त करती यह थीमबुक जे. कृष्णमूर्ति के अप्रतिम वचनों का एक अपूर्व संकलन है।
मृत्यु को समझने के लिये आपको अपने जीवन को समझना होगा। पर जीवन विचार कि निरंतरता नहीं है, बल्कि इसी निरंतरता ने तो हमारे तमाम क्लेशों को जन्म दिया है। तो क्या मन मृत्यु को उस दूरी से एकदम सन्निकट, पास ला सकता है? वास्तव में मृत्यु कहीं दूर नहीं है, यह यहीं है और अभी है। जब आप बात कर रहे होते हैं, जब आप आमोद-प्रमोद में होते हैं, सुन रहे होते हैं, कार्यालय जा रहे होते हैं, मृत्यु सदा बनी रहती है। यह जीवन में प्रतिपल आपके साथ रहती है, बिलकुल वैसे ही जैसे प्रेम रहता है। आपको यदि एक बार इस यथार्थ का बोध हो जाये, तो आप पायेंगे कि आप में मृत्युभय शेष नहीं रह गया है।
मृत्यु को समझने के लिये आपको अपने जीवन को समझना होगा। पर जीवन विचार कि निरंतरता नहीं है, बल्कि इसी निरंतरता ने तो हमारे तमाम क्लेशों को जन्म दिया है। तो क्या मन मृत्यु को उस दूरी से एकदम सन्निकट, पास ला सकता है? वास्तव में मृत्यु कहीं दूर नहीं है, यह यहीं है और अभी है। जब आप बात कर रहे होते हैं, जब आप आमोद-प्रमोद में होते हैं, सुन रहे होते हैं, कार्यालय जा रहे होते हैं, मृत्यु सदा बनी रहती है। यह जीवन में प्रतिपल आपके साथ रहती है, बिलकुल वैसे ही जैसे प्रेम रहता है। आपको यदि एक बार इस यथार्थ का बोध हो जाये, तो आप पायेंगे कि आप में मृत्युभय शेष नहीं रह गया है।
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